Zakir Khan 2009 में कॉलेज छोड़ा और क्यूंकि सकल उतनी अच्छी नहीं है तो ये पक्का था की Radio में job कर ही सकते है| Radio का course Complete हो चूका है | 3 महीनो की गुलामी वाली Internship भी की | और उन्होंने एक job देने का वादा भी किया | घर में लड़ाई हो चुकी थी की सितार अब मैं नहीं बजाऊंगा,पढ़ाई भी नहीं करनी है और मैं अपनी नौकरी खुद ढूंढ लूंगा | और घर गया तो नौकरी थी हाँथ में | 9 महीने बीत गए और नौकरी का झूठा वादा मरा हुआ निकला |
तो Zakir Khan के मन में एक ख्याल आया की अगर बेरोज़गार ही रहना है तो बड़े शहर के रहते है| पापा से कहा, पैसे भी नहीं थे पर अपना सामान पैक हो चूका था | january का महीना था सर्दी अभी भी थी और भाईसाब Train चढ़ चुके थे दिल्ली के लिए | और निकलते वक़्त माँ ने उसे 1500 रूपए दिए थे बस वही है |
20 साल की उम्र में घर छोड़ा पहुँच गया भारत की राजधानी दिल्ली | उसने कुछ सिखने के लिए Radio Institute join कर ली | पापा आये थे इनको Station छोरने | और जब वापस घर गए तो इनकी माँ की आँखों में आंसू थी |
उसकी माँ अपने आप को तसल्ली देते हुए कहा की ठीक है बच्चा है, शौक से गया है कुछ दिनों में आ जायगा | उसके पापा ने तभी उससे कहा – मैं जनता हूँ अपने बेटे को, कुछ दिन में इसे दिल्ली भी छोटी लगेगी |
तब, Train में Bathroom के बगल में ज़मीन पर बैठे Zakir Khan लिखते है– मैं शुन्य पर सवार हूँ (कविता)
दिल्ली में Hauz Khas Village नमक कोई जगह है वहां इनको सर छुपाने की जगह मिल गयी थी | वैसे तो Hauz Khas Village party Street है बड़े बड़े लोग और गाड़ियां अक्सर आपको देखने को मिलेंगी पर अगर आप गलियों में जाओगे तो बहुत गरीब लोग भी रहते है| और Zakir Khan उन्ही के साथ वहीं रहते थे | और क्यूंकि Radio Institute वहीं Hauz Khas में ही था तो वहां तो रहना ही था | घर का किराया था 7000 रूपए और घर से आते थे 6000. वैसे इसे 3500 रूपए ही देने पढ़ते थे Room के और बाकी बचे 2500 में इसे खाना, खाना भी है और जो करना है इसी में करना है|
दिल्ली में अपने एक दोस्त(Vikhas) के साथ रहते थे | 3 साल तक हम एकदम Successful बेरोज़गार रहे | पर आस अभी गयी नहीं है| अभी भी लगता है की कुछ हो जायगा | कुछ तो हम कर लेंगे | तब Zakir Khan लिखते है – अपने आप के भी पीछे खरा हूँ मैं………..
दिवाली का समय था और Zakir Khan का Favourite त्यौहार है| वो दिल्ली में अकेले थे | Room में बैठे आँख से आँसू निकल आ गए थे | तब वो लिखते है – बस का इंतज़ार करते हुए मेट्रो में खड़े खड़े………
उसके बाद चीज़े ज़रूर थोड़ी बदली | एक Job मिली | पर भाईसाब अपने Zakir Khan घर से तो क्रांति लाने के लिए निकले थे मतलब Job तो नहीं करना है| ये उस वक़्त Radio में Ad. लिखते थे | तो थोड़े Confuse थे की सही जा रहे है या गलत? क्या अपन यहीं करने आये थे ? तब उसने एक शेर लिखा था, कहते है की – क्या वो आग नहीं रही न शोलो सा दहकता हूँ
उसके बाद Job छोर दी और आ गए मुंबई | जब नए नए मुंबई आये थे, तो लिखते है-
कितना तनहा है नया शहर
तुम्हारी यादें तक नहीं है यहां
उसके बाद AIB में काम मिल गया | और क्यूंकि उन्हें Hindi Writer चाहिए था जो Hindi में Comedy भी करे | तो ये Job तो Zakir Khan के लिए बना था | तो Twitter में लिखते है-
कहाँ से आ रहे हो
बहुत दूर से
कोई जगह का नाम
मेहनत
Zakir Khan कहते है की वो वक़्त थोड़ा मुश्किल तो था पर उस वक़्त की एक खास बात थी की रोज कुछ नया होता था | मतलब अब इसे कैसे handle करूँ | तो वहीं भी भाई अपना Warrior बन चुके थे | Zakir Khan अगर Self Centered है तो वो अपने पापा की वजह से और किसी का team का हिस्सा कैसा होना ये अपनी मम्मी से सीखा है| मतलब हर बार Star नहीं बनना है कभी आपका कंधा किसी और को कंधा देने के लिए होना चाहिए |
हर बार Different नहीं होना है| दुनिया को Dominate कैसे करना है ये उसने अपने पापा से सीखा है और रिश्ते कैसे निभाते है बिना कुछ किसी को दिए ये उसने अपनी मम्मी से सीखा है| Zakir Khan कहते है की उसकी ज़िन्दगी में जितने भी Waah वाली बातें है उसने अपनी पापा से सीखा है और जितने भी Aah वाली बातें है अपनी माँ से सीखा है|
मैं शुन्य पर सवार हूँ ,
बे अदब सा मैं खूमार हूँ,
अब मुश्किलो से क्या डरु,
मैं ख़ुद केहर हज़ार हूँ ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ।
यह ऊँच नीच से परे ,
मजाल आँख में भरे ,
मैं लढ़ पढ़ा हूँ रात से ,
मशाल हाँथ में लिए ,
ना सूर्ये मेरे सात है
तो क्या नई यह बात हैं
वह शाम को है ढल गया
वह रात से था डर गया
मैं जुगनुओं का यार हूँ ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ।
भावनाएँ है मर चुकी,
सामवेदनाए हैं ख़त्म हो चुकि,
अब दर्द से क्या डरूँ,
यह जिंदगी ही ज़ख़्म है ,
मैं रहती मात हूँ ,
मैं बेजान स्याह रात हूँ,
मैं काली का श्रृंगार हूँ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ।
मैं शुन्य पर सवार हूँ।
हूँ राम का सा तेज मैं,
लंका पति सा ज्ञान हूँ ,
किसकी करू मैं आराधना ,
सबसे जो मैं महान हूँ ,
ब्राह्मण का मैं सार हूँ ,
मैं जल प्रवाह निहार हूँ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ।
मैं शुन्य पर सवार हूँ।
2.
मैं जाऊँ जब इस दुनिया से तो मेरी दास्ताँ सुनाना
ये भी बताना की समंदर जीतने से पहले, मैं हज़ारो बार छोटी–छोटी नदियों से हारा था
वो घर वो ज़मीन दिखाना कोई मगरूड़ जो कहे
तो शुरुवात मेरी बताना
बताना सफर की दुश्वारियाँ मेरी
ताकि कोई जो मेरी जैसी ज़मीन से आये
उसके लिए नदियां की धार हमेशा छोटी ही रहे, और
समंदर जितने ख्वाब उसकी आँख से कभी जाये न
पर उनसे मेरी गलतियाँ भी मत छुपाना
कोई पूछे तो बता देना किस दर्ज़े का नाकारा था
कह देना की झूठा था मैं
बताना कैसे ज़रूरत पर मैं काम न आ सका
वादे किये पर निभा न सका, इंतकाम सारे पुरे किये
पर इश्क़ अधूरे रहने दिए
बता देना सबको की मैं मतलबी बड़ा था
हर बड़े मक़ाम पर तनह ही खड़ा था
मेरा सब बुरा भी कहना पर मेरा सब अच्छा भी बताना
मैं जाऊँ जब इस दुनिया से तो मेरी दास्ताँ सुनाना ||
ये कविता उसने उन लोगो के लिए लिखा था जिन्हे लगता था शायद Zakir Khan अब बदल जायगा |
3.
कदमो से चल चल कर रास्तों को नाम बदलते देखा है
अपने टूटे हुए स्वाभिमान के साथ खुद को काम बदलते देखा है
देखि है ना उमीदी अपमान देखा है
ना चाहते हुए भी माँ बाप का झुकता आत्मसम्मान देखा है
सपनो को टूटते देखा है अपनों को छूटते देखा है
हालात की बंजर ज़मीन फाड़ के निकला हूँ
हालात की बंजर ज़मीन फाड़ के निकला हूँ
बेफिक्र रहिये मैं सौहरत की धुप में नहीं जलूँगा
आप बस साथ बनाए रखियेगा
अभी तो मैं लंबा चलूँगा |
1.
अपने आप के भी पीछे खरा हूँ मैं
ज़िन्दगी कितना धीरे चला हूँ मैं
और मुझे जगाने जो और भी हसीन हो के आते थे
उन ख़्वाबों को सच समझकर सोया रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी कितना धीरे चला हूँ मैं
2.
रिक्शा में बैठे बैठे गहरे शून्य में क्या देखते रहते हो
घूम सा चेहरा लिए क्या सोचते रहते हो
क्या खोया क्या पाया का हिसाब नहीं लगा पाए न इस बार भी
घर नहीं जा पाए न इस बार भी
3.
क्या वो आग नहीं रही न शोलो सा दहकता हूँ
रंग भी सबके जैसा है सबसा ही तो महकता हूँ
एक अरसे से हूँ था मैं कस्ती को भवरं में
तूफान से भी ज़्यादा साहिल से सेहरता हूँ
हां वो आग नहीं रही न शोले सा दहकता हूँ
4.
दिन रात मेहनत करने के बाद भी गला घोट घोट कर जीना
खाने का वक़्त है नहीं और काम बहुत ज़्यादा
इज़्ज़त कम और पैसे उससे भी कम
माँ बाप का साथ नहीं और किसी के कहे पर भरोसा हो जाये ऐसी किसी में भी बात नहीं
ये बड़ा शहर बहुत कर्ज़ा है मुझ पर
सब चुकाऊंगा बारी बारी से ||
5.
याद रखना आएगा ज़रूर
मेरी ज़मीन तुमसे गहरी है याद रखना
आसमान भी तुमसे ऊँचा होगा
6.
तुम्हारी यादें तक नहीं है यहां
वैसे तो ये उसने सुरुवात के दिनों में लिखा था पर आप अंत में सुनिए |
7.
ज़िन्दगी चाहे गुमनाम रहे
पर मौत मैं मशहूर चाहता हूँ
Customer – कम पैसे में ऐसा TV दिखाओ की माँ कसम स्वाद आ जाये |
Zakir Khan – jacqueline fernandez की तरह कातिलाना Figure वाला चाहिए ?? एक दम Slim Trim, Super Sexy ……?
Customer – एक दम |
Zakir Khan – क्या बोलते हो एक दम Light Weight होना चाहिए, पत्तियों की तरह ??
Customer – अपने को वही मांगता है| बगल से Sharma जी के लड़के को तो नहीं बुलाना पड़ेगा ??
Zakir Khan – ऐसे कैसे ?? हमने आपका पूरा ख्याल रखा है Covid में | बिलकुल नहीं पड़ेगा |
Customer – Picture और Sound Quality की क्या है??
Zakir Khan – Top Notch Picture Quality. और DOLBY Sound System के साथ आती है| मतलब अलग से Speaker लेने की ज़रूरत नहीं है|
एक सबसे ज़रूरी चीज़ है इसमें, वो पत्तियों(Husband) की हमेशा Complain रहती है न की बीवियां (Wife) हमेशा TV की Remote ले लेती है| एक बात मैं आपको बताऊँ- आप अपने Mobile से भी इसे Operate कर सकते हो | मतलब, अब मामला Set है|
कैसे अपन ससुराल सिमर से Soccer Game में Switch करेंगे न, कानो कान खबर नहीं होगी |
Customer – यार अब तो दे दी दो | और मुझे कुछ नहीं चहिये |
Zakir Khan – मैं यहां पर बात कर रहा हूँ की ONE PLUS 43 Inch Android TV की | One Plus जो Company है एकदम Top Class है. बहुत कम Time में इसमें Market में बहुत अच्छा पकड़ बना लिया है| तो Quality में तो कोई शक नहीं होना चाहिए |
इन सब Features के अलावा ये और भी मज़ेदार Features के साथ आता है| जैसे की
अगर आप TV लेने की सोच रहे हो, तो मुझे नहीं लगता इतना कम दाम में इतना अच्छा Branded Product मिलेगा |
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